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Sunday, April 14, 2024

खिलाते नहीं (हिंदी ग़ज़ल)

अनुराग शर्मा

अनुराग शर्मा

कदम राजपथ से हटाते नहीं
गली में मेरी अब वे आते नहीं।

कहीं सच में आ ही न जाये कोई
किसी को बेमतलब बुलाते नहीं।

अंधेरे में खुश नापसंद रोशनी 
खिड़की से परदा उठाते नहीं।

नहीं होने देंगे कसक में कमी
घावों को दिल से मिटाते नहीं।

जो बातें हुईं और न होंगी कभी
उन्हें भी कभी भूल पाते नहीं।

भावुक बहुत हैं कृपालु नहीं
कभी भाव अपना गिराते नहीं।

उसूलों के पक्के सदा से रहे
खाते बहुत हैं, खिलाते नहीं॥

Saturday, March 30, 2024

हमसे छिपाते हैं (हिंदी ग़ज़ल)

अनुराग शर्मा

अनुराग शर्मा


दुनिया को जताते हैं, पर हमसे छिपाते हैं
इल्ज़ाम-ए-तोताचश्मी हमपर ही लगाते हैं।

आती हवा का झोंका, उन्हें छूके हमको छू ले
वो इतने भर से हम पर अहसान जताते हैं।

सारा जहाँ हमारा, है जिनका सबसे वादा 
बन ईद का वो चंदा बस मुझको सताते हैं।

पुल सबके लिए बनते दीवार मेरी जानिब 
दिल मेरा सरे बाज़ार, क्यूँ इतना दुखाते हैं।

मेरे लिये वो मोती, हम उनके लिये मिट्टी 
उनके लिये ही अपना, हम भाव गिराते हैं।

फिर भी कहीं कभी जो, अटकेगा काम कोई 
दम घुटने लगे मेरा, प्यार इतना लुटाते हैं।

चाहें तो अभी ले लें, चाहें तो बख्श दें सर
यह जान जिनपे हाज़िर, वो जान न पाते हैं॥

Thursday, March 21, 2024

विश्व काव्य दिवस की शुभकामनाएँ!

चंद्रमा, आज रात

हम अच्छे हैं

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

अच्छा है
सब अच्छा होगा
क्योंकि हम अच्छे हैं
सब कुछ अच्छा रहा हमारा
क्योंकि हम सब अच्छे हैं
हमारे माता-पिता, भाई-भतीजे, सब अच्छे हैं
हमारे कपड़े, गाड़ी, गहने, बाड़ी, 
फ़ौजदारी, ज़मींदारी
बोले तो, सब कुछ बहुत अच्छा है
समस्या हमारे बाहर है
समस्या हमारे घर के बाहर है
समस्या हमारे जाति-सम्प्रदाय-देश-भाषा के बाहर है
समस्या दूसरी ओर की है
अपने से भिन्न, दूसरे लोगों की है
जिनके तौर-तरीके, खाना-पीना, ओढ़ना-बैठना
सब हमसे भिन्न हैं
शेख बिरहमन मुल्ला पाँड़े
पारसी यहूदी सिख ईसाई
जैन बौद्ध कामरेड कसाई
वे कोई भी हो सकते हैं
जिनके माँ-बाप, हमारे पुरखों जैसे सर्वगुण-सम्पन्न नहीं
और जिनका वर्तमान हमारे वर्तमान सा समृद्ध नहीं
और जिनका भविष्य हमारे बच्चों सा सुनहरा नहीं...
जिनके पास ज़मीन, लाठी, मुनाफ़ा, कैपिटेशन, डोनेशन, रिज़र्वेशन तो दूर
आशा की किरण तक नहीं है
जो पराये हैं अपने देश में
बेदरो-दीवार हैं अपने गाँव-कस्बे में
बेघर हैं अपने घर में
हमसे बर्दाश्त नहीं होते ऐसे लोग
चिंता है 
कि ये भिनकती हुई मधुमक्खियाँ
हमारे शहद के ढेर को दूषित न कर दें
ये चूज़े, ये चिड़ियाँ
तोड़ न दें हमारे बाज़ों को 
ये बंदर-भालू
जला न दें हमारी सोने की लंका
लार टपकाते ये वंचित-दलित
नज़र न लगा दें
हमारे ट्रैक्टर, बीएमडब्ल्यू, लैंडरोवर पर
हमारे खेत, खलिहान, गोदाम, महल-अट्टालिका पर
हमारे संचित धन पर।
हमारी जान को खतरा है
हमारी पहचान को खतरा है।
युद्ध से पहले संधि चाहिये
बाड़ के लिये समझौता ज़रूरी है
आतंकवाद की आड़ के लिये
समझौता एक्सप्रेस भी ज़रूरी है
फाँसी से पहले अहिंसा ज़रूरी है
क्रांति से पहले शांति ज़रूरी है
आज़ादी से पहले, विभाजन ज़रूरी है
बुतपरस्ती की नापाकी मिटाकर ज़मीन पाक करना ज़रूरी है,
पाकिस्तान ज़रूरी है।
उनके ग्रंथों में लिखी हैं, 
क्रूसेड की बात, जिहाद की बात, धर्मयुद्ध की बात
कर्म के फल की बात
क़यामत की बातें, आखिरत की बातें, प्रलय की बातें
ऐसी किसी भी प्रलय की आशंका से पहले
उनकी विचारधारा का, उनकी संस्कृति का 
उनके ग्रंथों का, उनके पुस्तकालयों का खात्मा ज़रूरी है।
उनका खात्मा ज़रूरी है।
हमारे अलावा, हमारे जैसों के अलावा हर किसी का 
खात्मा बहुत ज़रूरी है।
उसके बाद बस हम रहेंगे
सबसे अच्छे
इसलिये
सब अच्छा होगा
बहुत अच्छा होगा।
क्योंकि हम अच्छे हैं
हम सबसे अच्छे हैं
हमारे माता-पिता, भाई-भतीजे, नाते-रिश्तेदार, 
सब अच्छे हैं।
***

विश्व काव्य दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ! 
World Poetry Day was established by the United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization (UNESCO) during its 30th General Conference in Paris in 1999. It is celebrated on March 21st.

Tuesday, June 13, 2023

बेगाने इस शहर में

(अनुराग शर्मा)

बाग़-बगीचे, ताल-तलैया
लहड़ू, इक्का, नाव ले गये

घर, आंगन, ओसारे सारे
खेत, चौपालें, गाँव ले गये

कुत्ते, घोड़ा, गाय, बकरियाँ
पीपल, बरगद छाँव ले गये

रोटी छीनी, पानी लीला
भेजा, हाथ और पाँव ले गये

चौक-चौक वे भीख मांगते
जिनकी कुटिया, ठाँव ले गये

Tuesday, May 23, 2023

बीती को बिसार के...

(अनुराग शर्मा)

कुछ अहसान जताते बीती
और कुछ हमें सताते बीती

चाह रही फूलों की लेकिन
किस्मत दंश चुभाते बीती

जिन साँपों ने डसा निरंतर
उनको दूध पिलाते बीती

आस निरास की पींगें लेती
उम्र यूँ धोखे खाते बीती

खुल के बात नहीं हो पाई
ज़िंदगी भेद छुपाते बीती

जिनको याद कभी न आये
उनकी याद दिलाते बीती॥

Saturday, July 9, 2022

काव्य: भाव-बेभाव

(अनुराग शर्मा)

प्रेम तुम समझे नहीं, तो हम बताते भी तो क्या
थे रक़ीबों से घिरे तुम, हम बुलाते भी तो क्या 

वस्ल के क़िस्से ही सारे, नींद अपनी ले गये
विरह के सपने तुम्हारे, फिर डराते भी तो क्या

जो कहा, या जैसा समझा, वह कभी तुम थे नहीं
नक़्शा-ए-बुत-ए-काफ़िर, हम बनाते भी तो क्या

भावनाओं के भँवर में, हम फँसे, तुम तीर पर
बिक गये बेभाव जो, क़ीमत चुकाते भी तो क्या

अनुराग है तुमने कहा, पर प्रीत दिल में थी नहीं
हम किसी अहसान की, बोली लगाते भी तो क्या

Tuesday, June 21, 2022

महाकवियों के बीच हम


हे खुले केश वाली तरुणी क्यूँ दिखती हो यूँ उदास प्रिये
आके छत पे तुम बैठ गयीं 
क्यूँ छोड़ के सारी आस प्रिये

इस छत पर है दीवार नहीं पर निष्ठुर यह संसार नहीं
मुस्कान तुम्हारी 
लाखों की,  हो चिंता से दो-चार नहीं

यदि केश तुम्हारे सूख गये तो चलो कलेवा कर लो तुम
शुभ दिन की शुरुआत करो मत बैठो ऐसे यूँ गुम-सुम
***

एक मित्र ने वाट्सऐप पर निम्न टिप्पणी भेजी तो उपर्युक्त पंक्तियाँ स्वतः फूट पड़ीं

एक नवयुवती जब छज्जे पर बैठी  है। केश खुले हुए हैं और चेहरे को देखकर लगता है कि वह उदास है। उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है। विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते.....

😀😀😀😀😀😀😀😀😀

मैथिली शरण गुप्त

अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो 
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो ? 
धीरज धरो संसार में, किसके नहीं है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।😀


काका हाथरसी

गोरी बैठी छत पर, कूदन को तैयार 
नीचे पक्का फर्श है, भली करे करतार 
भली करे करतार, न दे दे कोई धक्का 
ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का 
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ना 
उधर कूदना मेरे ऊपर मत गिर पड़ना।😊


गुलजार

वो बरसों पुरानी इमारत 
शायद 
आज कुछ गुफ्तगू करना चाहती थी 
कई सदियों से 
उसकी छत से कोई कूदा नहीं था।
और आज 
उस 
तंग हालात 
परेशां
स्याह आँखों वाली 
उस लड़की ने
इमारत के सफ़े 
जैसे खोल ही दिए
आज फिर कुछ बात होगी 
सुना है इमारत खुश बहुत है...😀


हरिवंश राय बच्चन

किस उलझन से क्षुब्ध आज 
निश्चय यह तुमने कर डाला
घर चौखट को छोड़ त्याग
चढ़ बैठी तुम चौथा माला
अभी समय है, जीवन सुरभित
पान करो इस का बाला
ऐसे कूद के मरने पर तो
नहीं मिलेगी मधुशाला 😊


प्रसून जोशी

जिंदगी को तोड़ कर 
मरोड़ कर 
गुल्लकों को फोड़ कर 
क्या हुआ जो जा रही हो 
सोहबतों को छोड़ कर 😄


रहीम

रहिमन कभउँ न फांदिये, छत ऊपर दीवार 
हल छूटे जो जन गिरि, फूटै और कपार 😀


तुलसी

छत चढ़ नारी उदासी कोप व्रत धारी 
कूद ना जा री दुखीयारी
सैन्य समेत अबहिन आवत होइहैं रघुरारी 😟


कबीर

कबीरा देखि दुःख आपने, कूदिंह छत से नार 
तापे संकट ना कटे , खुले नरक का द्वार'' 😃


श्याम नारायण पांडे

ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी 
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी 
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से 
मान से, गुमान से, मत गिरो मकान से 
तुम डगर पे मत गिरो, तुम नगर पे मत गिरो
तुम कहीं अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।😃


गोपाल दास नीरज

हो न उदास रूपसी, तू मुस्काती जा
मौत में भी जिन्दगी के कुछ फूल खिलाती जा
जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से
जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा 😀


राम कुमार वर्मा

हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाट मत जोहो।
जानता हूँ इस जगत का
खो चुकि हो चाव अब तुम
और चढ़ के छत पे भरसक
खा चुकि हो ताव अब तुम
उसके उर के भार को समझो।
जीवन के उपहार को तुम ज़ाया ना खोहो,
हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाँट मत जोहो।😀


हनी सिंह

कूद जा डार्लिंग क्या रखा है 
जिंजर चाय बनाने में 
यो यो की तो सीडी बज री 
डिस्को में हरयाणे में 
रोना धोना बंद कर
कर ले डांस हनी के गाने में 
रॉक एंड रोल करेंगे कुड़िये 
फार्म हाउस के तहखाने में..

😄😄😄😄😄😄😄😄😄

5 मिनट के बाद वह उठी और बोली, "चलो बाल तो सूख गए अब चल के नाश्ता कर लेती हूँ।"

🙏 हिन्दी प्रेमियों के लिए 🙏

🌸ऐसा आनंद किसी दूसरी भाषा में संभव नहीं है🌸

Saturday, July 31, 2021

काव्य: वफ़ा

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

वफ़ा ज्यूँ हमने निभायी, कोई निभाये क्यूँ
किसी के ताने पे दुनिया को छोड़ जाये क्यूँ॥

कराह आह-ओ-फ़ुग़ाँ न कभी जो सुन पाया
ग़रज़ पे अपनी बार-बार वह बुलाये क्यूँ॥

सही-ग़लत की है हमको तमीज़ जानेमन
न करें क्या, या करें क्या, कोई बताये क्यूँ॥

झुलस रहा है बदन, पर दिमाग़ ठंडा है
जो आग दिल में लगी हमनवा बुझाये क्यूँ॥

थे हमसफ़र तो बात और हुआ करती थी
वो दिल्लगी से हमें अब भला सताये क्यूँ॥

जो बार-बार हमें छोड़ बिछड़ जाता था 
वो बार-बार मेरे दर पे अब भी आये क्यूँ॥
***

Sunday, July 18, 2021

एकाकी कोना

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

मन में इक सूना कोना है
जिसमें छिप-छिपके रोना है
अपनी पीर सम्भालो आप ही
कहके किससे क्या होना है॥

गलियों-गलियों फिरता मारा
रात विवश और दिन बेचारा
जागृत मनवा चैन न पाता
भाग्य में अपने कब सोना है॥

ग़र्द-गुबार और छींटें गंदी
इधर-उधर से हम पर पड़तीं
दुनिया धोने निकले थे अब 
तन-मन अपना ही धोना है॥ 

सीमित रिश्ते सतही नाते
खुद से बाहर सोच न पाते
जीते जी जिससे भी मिल लो
शव अपना खुद ही ढोना है॥

सुख आभासी दुःख आभासी
जीवन माया, या बस छाया
जो भी मिला इसी जीवन का
अपना क्या था जो खोना है॥

Saturday, July 17, 2021

कविता: मुक्ति

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


जीवन को रेहन रखा था
स्वार्थी लालों के तालों में॥

निर्मल अमृत व्यर्थ बहाया
सीमित तालों या नालों में॥

परपीड़क हर ओर मिले पर
जगह मिली न दिलवालों में॥

अब जब इतना बोध हो गया
सोच रहा मैं किस पथ जाऊँ॥ 

स्वाद उठाऊँ जीवन का
या मुक्तमना छुटकारा पाऊँ॥

धरती उठा उधर रख दूँ या
चल दूँ खिसके मतवालों में॥

चलूँ चाल न अपनी लेकिन
न उलझूँ ठगिनी चालों में॥

Friday, April 16, 2021

प्रेम के हैं रूप कितने (अनुराग शर्मा)

तोड़ता भी, जोड़ता भी, मोड़ता भी प्रेम है,
मेल को है आतुर और छोड़ता भी प्रेम है॥

एकल वार्ता और काव्यपाठ, साढ़े सात मिनट की ऑडियो क्लिप
गूगल पॉडकास्ट (Google Podcast)
स्पॉटिफ़ाई (spotify)एंकर (anchor.fm)
सावन (Saavn)

काव्य तरंग || असीम विस्तार



Sunday, February 7, 2021

कविता: निर्वाण

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


अंधकार से प्रकट हुए हैं
अंधकार में खो जायेंगे

बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे

इतने दिन से जगे हुए हम
थक कर यूँ ही सो जायेंगे

देख हमें जो हँसते हैं वे
हमें न पाकर रो जायेंगे

रहे अधूरे-आधे अब तक
इक दिन पूरे हो जायेंगे॥

Tuesday, November 10, 2020

* मैत्री *

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

दुश्मनी जमके हमसे है ठाने
दोस्ती किससे है वही जाने

हमने दरियादिली नहीं देखी
खूब सुनते हैं उसके अ‍फ़साने

अंजुमन में सभी हैं अपने वहाँ
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने

कुछ जला न धुआँ ही उट्ठा है
न वो शम्मा न हम हैं परवाने

कुछ तो है खास मैं नहीं जानूँ
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने

जाने क्या कह दिया है शर्मा ने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने

Sunday, October 11, 2020

* घर के वृद्ध *


कहते कहते हुए रुक जाते हैं
जब न सुनता किसी को पाते हैं।

चलो अब डायरी में लिख लेंगे
मन को कहके यही भरमाते हैं।

बीती बातों को याद कर-कर के 
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।

सबकी मजबूरियों को समझा है
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।

अपनी तनहाइयों को झटका दे
गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
***

Sunday, October 4, 2020

हिंदी ग़ज़ल

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

पछताना क्या क्या यूँ रोना
हुआ नहीं यदि था जो होना

कल न था कल होना है जो 
जीवन है बस पाना-खोना

चना अकेला भाड़ बड़ा है
मन में यह दुविधा न ढोना

टूटी छत बिखरी दीवारें
तन मिट्टी पर मन है सोना

याद खिली मन के कोने में
हुआ सुवासित कोना कोना


Sunday, August 2, 2020

रक्षाबंधन पर्व की बधाई

श्रावणी पूर्णिमा की बधाई
(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


राखी रोली आ पहुँचे हैं
याद बहन की आई है।

कैसी हैं क्या करती होंगी
हिय में छवि मुस्कायी है।

है प्रेम छलकता चिट्ठी में
इतराती एक कलाई है।

अक्षत का संदेश स्नेहवत
शुभ-शुभ दिया दिखाई है।

अनुराग भरे अक्षर सारे
शब्दों में भरी मिठाई है॥

Sunday, July 26, 2020

भूल रहा हूँ

चित्र: रीतेश सब्र
(शब्द: अनुराग शर्मा)


यादों के साथ खेल मधुर खेल रहा हूँ
इतना ही रहा याद के कुछ भूल रहा हूँ

सब कुछ हमेशा याद भला कैसे रहेगा
यह भी नहीं कि बातें सभी भूल रहा हूँ

हर याद के साथ चुभी टीस सी दिल में
अच्छा है के उस हूक को मैं भूल रहा हूँ

आवाज़ तुम्हारी सदा पहचान लूंगा मैं
बोली थीं क्या, मैं इतना ज़रा भूल रहा हूँ

ये कौन हैं, वे कौन, रहे कैसे मुझे याद
मैं रहता कहाँ, कौन हूँ मैं भूल रहा हूँ॥

Sunday, June 28, 2020

मरेंगे हम किताबों में

(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)


मरेंगे हम किताबों में, वरक होंगे कफ़न अपना
किसी ने न हमें जाना, न पहचाना सुख़न अपना

बनाया गुट कोई अपना, न कोई वाद अपनाया
आज़ादी सोच में रखी, यहीं हारा है फ़न अपना

कभी बांधा नहीं खुद को, पराये अपने घेरों में
मुहब्बत है ज़ुबाँ अपनी, जहाँ सारा वतन अपना

नहीं घुड़दौड़ से मतलब, हुए नीलाम भी न हम
जो हम होते उन्हीं जैसे, वही होता पतन अपना

भले न नाम लें मेरा,  मेरा लिखा वे जब बोलें
किसी के काम में आये, यही सोचेगा मन अपना

भीगें प्रेम से तन-मन, न जीवन हो कोई सूखा
न कोई प्रेम का भूखा, नहीं टूटे स्वपन अपना

मीठे गीत सब गायें, लबों पर किस्से हों अपने
चले जाने के बरसों बाद, हो पूरा जतन अपना॥

Saturday, February 22, 2020

कुआँ और खाई - कविता

पिट्सबर्ग आजकल
(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)

जब गले पड़ें
दो मुसीबतें
जिनमें से एक
अनिवार्यतः अपनानी है।

तब एक पल
ठहरकर
सोच-समझकर
तुक भिड़ानी है।

खाई में जान
निश्चित ही जानी है
जबकि
कुएँ में पानी है।

खाई की गर्त
नामालूम
कुएँ की गहराई
तो पहचानी है।

खाई में कौन मिलेगा
किसको सुनाएँ
जबकि कुएँ से पुकार
बस्ती तक पहुँच जानी है।

मौत का तो भी अगर
दिन रहा मुकर्रर
व्यर्थ बिखरने से अच्छी
जल समाधि अपनानी है

Saturday, February 8, 2020

विभाजन - एक ग़ज़ल

कथा तुमने लिखी अपनी, मगर किस्सा हमारा था
किताबों पर नहीं दिल में भी, मेरे घर तुम्हारा था।

हमारी बात सुनने का, कभी न वक्त तुम पर था
सदायें लौटकर आईं, तुम्हें जब-जब पुकारा था।

आज़ादी तुमने चाही थी, सदा तुमको मिली भी थी
मगर मुझको मिले मुक्ति, नहीं तुमको गवारा था।

हमारा घर बचा रहता, जो संग-संग तुम चले होते
जब भी तुमने तोड़ा घर, तो मैंने फिर सँवारा था।

दीवारें ढह गईं सारी, धरातल भी हुआ अस्थिर
उड़ा जब तिनकों में छप्पर, बड़ा बेढब नज़ारा था॥