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Tuesday, June 13, 2023

बेगाने इस शहर में

(अनुराग शर्मा)

बाग़-बगीचे, ताल-तलैया
लहड़ू, इक्का, नाव ले गये

घर, आंगन, ओसारे सारे
खेत, चौपालें, गाँव ले गये

कुत्ते, घोड़ा, गाय, बकरियाँ
पीपल, बरगद छाँव ले गये

रोटी छीनी, पानी लीला
भेजा, हाथ और पाँव ले गये

चौक-चौक वे भीख मांगते
जिनकी कुटिया, ठाँव ले गये

Tuesday, May 23, 2023

बीती को बिसार के...

(अनुराग शर्मा)

कुछ अहसान जताते बीती
और कुछ हमें सताते बीती

चाह रही फूलों की लेकिन
किस्मत दंश चुभाते बीती

जिन साँपों ने डसा निरंतर
उनको दूध पिलाते बीती

आस निरास की पींगें लेती
उम्र यूँ धोखे खाते बीती

खुल के बात नहीं हो पाई
ज़िंदगी भेद छुपाते बीती

जिनको याद कभी न आये
उनकी याद दिलाते बीती॥

Saturday, July 9, 2022

काव्य: भाव-बेभाव

(अनुराग शर्मा)

प्रेम तुम समझे नहीं, तो हम बताते भी तो क्या
थे रक़ीबों से घिरे तुम, हम बुलाते भी तो क्या 

वस्ल के क़िस्से ही सारे, नींद अपनी ले गये
विरह के सपने तुम्हारे, फिर डराते भी तो क्या

जो कहा, या जैसा समझा, वह कभी तुम थे नहीं
नक़्शा-ए-बुत-ए-काफ़िर, हम बनाते भी तो क्या

भावनाओं के भँवर में, हम फँसे, तुम तीर पर
बिक गये बेभाव जो, क़ीमत चुकाते भी तो क्या

अनुराग है तुमने कहा, पर प्रीत दिल में थी नहीं
हम किसी अहसान की, बोली लगाते भी तो क्या

Saturday, July 31, 2021

काव्य: वफ़ा

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

वफ़ा ज्यूँ हमने निभायी, कोई निभाये क्यूँ
किसी के ताने पे दुनिया को छोड़ जाये क्यूँ॥

कराह आह-ओ-फ़ुग़ाँ न कभी जो सुन पाया
ग़रज़ पे अपनी बार-बार वह बुलाये क्यूँ॥

सही-ग़लत की है हमको तमीज़ जानेमन
न करें क्या, या करें क्या, कोई बताये क्यूँ॥

झुलस रहा है बदन, पर दिमाग़ ठंडा है
जो आग दिल में लगी हमनवा बुझाये क्यूँ॥

थे हमसफ़र तो बात और हुआ करती थी
वो दिल्लगी से हमें अब भला सताये क्यूँ॥

जो बार-बार हमें छोड़ बिछड़ जाता था 
वो बार-बार मेरे दर पे अब भी आये क्यूँ॥
***

Sunday, July 18, 2021

एकाकी कोना

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


मन में इक सूना कोना है
जिसमें छिप-छिपके रोना है
अपनी पीर सम्भालो आप ही
कहके किससे क्या होना है॥

गलियों-गलियों फिरता मारा
रात विवश और दिन बेचारा
जागृत मनवा चैन न पाता
भाग्य में अपने कब सोना है॥

ग़र्द-गुबार और छींटें गंदी
इधर-उधर से हम पर पड़तीं
दुनिया धोने निकले थे अब 
तन-मन अपना ही धोना है॥ 

सीमित रिश्ते सतही नाते
खुद से बाहर सोच न पाते
जीते जी जिससे भी मिल लो
शव अपना खुद ही ढोना है॥

सुख आभासी दुःख आभासी
जीवन माया, या बस छाया
जो भी मिला इसी जीवन का
अपना क्या था जो खोना है॥

Saturday, July 17, 2021

कविता: मुक्ति

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


जीवन को रेहन रखा था
स्वार्थी लालों के तालों में॥

निर्मल अमृत व्यर्थ बहाया
सीमित तालों या नालों में॥

परपीड़क हर ओर मिले पर
जगह मिली न दिलवालों में॥

अब जब इतना बोध हो गया
सोच रहा मैं किस पथ जाऊँ॥ 

स्वाद उठाऊँ जीवन का
या मुक्तमना छुटकारा पाऊँ॥

धरती उठा उधर रख दूँ या
चल दूँ खिसके मतवालों में॥

चलूँ चाल न अपनी लेकिन
न उलझूँ ठगिनी चालों में॥

Friday, April 16, 2021

प्रेम के हैं रूप कितने (अनुराग शर्मा)

तोड़ता भी, जोड़ता भी, मोड़ता भी प्रेम है,
मेल को है आतुर और छोड़ता भी प्रेम है॥

एकल वार्ता और काव्यपाठ, साढ़े सात मिनट की ऑडियो क्लिप
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काव्य तरंग || असीम विस्तार



Sunday, February 7, 2021

कविता: निर्वाण

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


अंधकार से प्रकट हुए हैं
अंधकार में खो जायेंगे

बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे

इतने दिन से जगे हुए हम
थक कर यूँ ही सो जायेंगे

देख हमें जो हँसते हैं वे
हमें न पाकर रो जायेंगे

रहे अधूरे-आधे अब तक
इक दिन पूरे हो जायेंगे॥

Tuesday, November 10, 2020

* मैत्री *

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

दुश्मनी जमके हमसे है ठाने
दोस्ती किससे है वही जाने

हमने दरियादिली नहीं देखी
खूब सुनते हैं उसके अ‍फ़साने

अंजुमन में सभी हैं अपने वहाँ
घर से बेदर हमीं हैं अनजाने

कुछ जला न धुआँ ही उट्ठा है
न वो शम्मा न हम हैं परवाने

कुछ तो है खास मैं नहीं जानूँ
यूँ नहीं सब हुए हैं दीवाने

जाने क्या कह दिया है शर्मा ने
हमसे अब वे लगे हैं शर्माने

Sunday, October 11, 2020

* घर के वृद्ध *


कहते कहते हुए रुक जाते हैं
जब न सुनता किसी को पाते हैं।

चलो अब डायरी में लिख लेंगे
मन को कहके यही भरमाते हैं।

बीती बातों को याद कर-कर के 
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।

सबकी मजबूरियों को समझा है
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।

अपनी तनहाइयों को झटका दे
गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
***

Sunday, October 4, 2020

हिंदी ग़ज़ल

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

पछताना क्या क्या यूँ रोना
हुआ नहीं यदि था जो होना

कल न था कल होना है जो 
जीवन है बस पाना-खोना

चना अकेला भाड़ बड़ा है
मन में यह दुविधा न ढोना

टूटी छत बिखरी दीवारें
तन मिट्टी पर मन है सोना

याद खिली मन के कोने में
हुआ सुवासित कोना कोना


Sunday, August 2, 2020

रक्षाबंधन पर्व की बधाई

श्रावणी पूर्णिमा की बधाई
(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


राखी रोली आ पहुँचे हैं
याद बहन की आई है।

कैसी हैं क्या करती होंगी
हिय में छवि मुस्कायी है।

है प्रेम छलकता चिट्ठी में
इतराती एक कलाई है।

अक्षत का संदेश स्नेहवत
शुभ-शुभ दिया दिखाई है।

अनुराग भरे अक्षर सारे
शब्दों में भरी मिठाई है॥

Sunday, July 26, 2020

भूल रहा हूँ

चित्र: रीतेश सब्र
(शब्द: अनुराग शर्मा)


यादों के साथ खेल मधुर खेल रहा हूँ
इतना ही रहा याद के कुछ भूल रहा हूँ

सब कुछ हमेशा याद भला कैसे रहेगा
यह भी नहीं कि बातें सभी भूल रहा हूँ

हर याद के साथ चुभी टीस सी दिल में
अच्छा है के उस हूक को मैं भूल रहा हूँ

आवाज़ तुम्हारी सदा पहचान लूंगा मैं
बोली थीं क्या, मैं इतना ज़रा भूल रहा हूँ

ये कौन हैं, वे कौन, रहे कैसे मुझे याद
मैं रहता कहाँ, कौन हूँ मैं भूल रहा हूँ॥

Sunday, June 28, 2020

मरेंगे हम किताबों में

(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)


मरेंगे हम किताबों में, वरक होंगे कफ़न अपना
किसी ने न हमें जाना, न पहचाना सुख़न अपना

बनाया गुट कोई अपना, न कोई वाद अपनाया
आज़ादी सोच में रखी, यहीं हारा है फ़न अपना

कभी बांधा नहीं खुद को, पराये अपने घेरों में
मुहब्बत है ज़ुबाँ अपनी, जहाँ सारा वतन अपना

नहीं घुड़दौड़ से मतलब, हुए नीलाम भी न हम
जो हम होते उन्हीं जैसे, वही होता पतन अपना

भले न नाम लें मेरा,  मेरा लिखा वे जब बोलें
किसी के काम में आये, यही सोचेगा मन अपना

भीगें प्रेम से तन-मन, न जीवन हो कोई सूखा
न कोई प्रेम का भूखा, नहीं टूटे स्वपन अपना

मीठे गीत सब गायें, लबों पर किस्से हों अपने
चले जाने के बरसों बाद, हो पूरा जतन अपना॥

Saturday, February 22, 2020

कुआँ और खाई - कविता

पिट्सबर्ग आजकल
(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)

जब गले पड़ें
दो मुसीबतें
जिनमें से एक
अनिवार्यतः अपनानी है।

तब एक पल
ठहरकर
सोच-समझकर
तुक भिड़ानी है।

खाई में जान
निश्चित ही जानी है
जबकि
कुएँ में पानी है।

खाई की गर्त
नामालूम
कुएँ की गहराई
तो पहचानी है।

खाई में कौन मिलेगा
किसको सुनाएँ
जबकि कुएँ से पुकार
बस्ती तक पहुँच जानी है।

मौत का तो भी अगर
दिन रहा मुकर्रर
व्यर्थ बिखरने से अच्छी
जल समाधि अपनानी है

Saturday, February 8, 2020

विभाजन - एक ग़ज़ल

कथा तुमने लिखी अपनी, मगर किस्सा हमारा था
किताबों पर नहीं दिल में भी, मेरे घर तुम्हारा था।

हमारी बात सुनने का, कभी न वक्त तुम पर था
सदायें लौटकर आईं, तुम्हें जब-जब पुकारा था।

आज़ादी तुमने चाही थी, सदा तुमको मिली भी थी
मगर मुझको मिले मुक्ति, नहीं तुमको गवारा था।

हमारा घर बचा रहता, जो संग-संग तुम चले होते
जब भी तुमने तोड़ा घर, तो मैंने फिर सँवारा था।

दीवारें ढह गईं सारी, धरातल भी हुआ अस्थिर
उड़ा जब तिनकों में छप्पर, बड़ा बेढब नज़ारा था॥

Sunday, January 12, 2020

मुझे याद है

मुझे याद हैं
लोहड़ी की रातें
जब आग के चारों ओर
सुंदर मुंदरिये हो
के साथ गूंजते थे
खिलखिलाते मधुर स्वर

मुझे याद हैं
नन्ही लड़कियाँ
जो बनतालाब की शामों को
रोशन कर देती थीं
अपनी चुन्नी में लपेटे
जगमगाते जुगनुओं से।

मुझे याद हैं
वे दिन जब
यौवन और बुढ़ापा
नहीं लगा सके थे
सेंध
मेरे शैशव में

मुझे याद हैं
अनमोल उस
बचपन की यादें
जब दौड़ता था मैं
ताकि छू सकूँ नन्ही उंगलियों से
क्षितिज पर डूबते सूरज को

मुझे याद हैं
सुहाने विगत की बातें
सब याद है मुझे

🙏 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!


Friday, June 7, 2019

कविता: अनुनय

अनुराग शर्मा 

सुबह की ओस में आँखें मुझे भिगोने दो
युगों से सूखी रहीं आँसुओं से धोने दो

कभी उठा तो बिखर जाऊंगा सहर बनकर
बहुत थका हूँ मुझे रात भर को सोने दो

हँसी लबों पे बनाये रखी दिखाने को
अभी अकेला हूँ कुछ देर मुझको रोने दो

सफ़र भला था जहाँ तक तुम्हारा साथ रहा
मधुर हैं यादें उन्हीं में मुझे यूँ खोने दो

कँटीली राह रही आसमान तपता हुआ
खुशी के बीज मुझे भी कभी तो बोने दो

रहो सुखी सदा जहाँ भी रहो जैसे रहो
हुआ बुरा जो मेरे साथ उसको होने दो

Friday, March 29, 2019

दादी माँ कुछ बदलो तुम भी

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)




सदा खिलाया औरों को
खुद खाना सीखो दादी माँ

सबको देते उम्र कटी
अब पाना सीखो दादी माँ

थक जाती हो जल्दी से
अब थोड़ा सा आराम करो

चुस्ती बहुत दिखाई अब
सुस्ताना सीखो दादी माँ

रूठे सभी मनाये तुमने
रोते सभी हँसाये तुमने

मन की बात रखी मन में
बतलाना सीखो दादी माँ

दिन छोटा पर काम बहुत
खुद करने से कैसे होगा

पहले कर लेती थीं अब
करवाना सीखो दादी माँ

हम बच्चे हैं सभी तुम्हारे
जो चाहोगी वही करेंगे

मानी सदा हमारी अब
मनवाना सीखो दादी माँ



Thursday, March 14, 2019

सत्य - लघु कविता

(अनुराग शर्मा)

सत्य नहीं कड़वा होता
कड़वी होती है कड़वाहट

पराजय की आशंका और
अनिष्ट की अकुलाहट

सत्यासत्य नहीं देखती
मन पर हावी घबराहट

कड़वाहट तो दूर भागती
सुनते ही सत्य की आहट