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Thursday, November 24, 2011

थैंक्सगिविंग - एक अनूठा आभार! - इस्पात नगरी से 52

आज नवम्बर मास का चौथा गुरुवार होने के कारण हर वर्ष की तरह आज संयुक्त राज्य अमेरिका में थैंक्सगिविंग का पर्व मनाया जा रहा है। यह उत्सव है परिवार मिलन का और अपने सुख और समृद्धि के लिये ईश्वर का आभार प्रकट करने के लिये। इस पर्व की परम्परा यूरोप से आये आप्रवासियों और अमेरिका के मूल निवासियों के समारोहों की सम्मिलित परम्परा का संगम है। आधुनिक थैंक्सगिविंग के आरम्भ के बारे में बहुत सी कहानियाँ हैं। सबसे ज़्यादा प्रचलित कथा के अनुसार इस परम्परा की जड़ें आधुनिक मासाचुसेट्स राज्य के प्लिमथ स्थान में 1621 में अच्छी फसल की खुशियाँ मनाने के लिये हुए एक समारोह में छिपी हैं। समारोह वार्षिक हो गया और यूरोपीय निवासियों के पास पर्याप्त भोजन न होने की दशा में वम्पानोआग जाति के मूल निवासियों ने उन्हें बीज देकर उनकी सहायता की।

टर्की (चित्र: अपार शर्मा द्वारा)
जैसे इस पर्व के उद्गम के बारे में किसी को ठीक से नहीं पता है वैसे ही किसी को यह नहीं पता कि धन्यवाद या आभार प्रकट करने के इस दिन पर टर्की पक्षी खाने की परम्परा कब से शुरू हुई। अधिकांश लोग इस बात पर सहमत हैं कि आरम्भिक आभार दिवसों पर टर्की नहीं खाई जाती थी। जो भी हो, कालांतर में टर्की इस पारिवारिक पर्व का आधिकारिक भोजन बन गयी। संयुक्त राज्य जनगणना विभाग के एक अनुमान के अनुसार आज के आभार दिवस के लिये पूरे देश में लगभग 24 करोड़ अस्सी लाख टर्कियाँ पोषित की गयीं।

ऐसा नहीं कि आज सारे अमेरिका ने टर्की खाई हो। कुछ समय से लोगों ने टर्की के शाकाहारी विकल्पों के बारे में सोचना आरम्भ किया है। टोफ़र्की एक ऐसा ही विकल्प है। इसके साथ सामान्यतः कद्दू की मिठाई, आलू और करी जैसी सह-डिशें प्रयुक्त होती हैं। बहुत से अमेरिकी परिवारों में आजकल नई पीढी शाकाहारी जीवन शैली अपना रही है। इस वजह से कई जगह बुज़ुर्गों की टर्की के साथ में टोफ़र्की बनाने का प्रचलन भी बढ रहा है। शाकाहारी और वीगन परिवारों द्वारा प्रयुक्त टोफ़र्की मुख्यतः गेहूँ और सोयाबीन के प्रोटीन से बनाया जाता है। हाँ, हमारे जैसे परिवार तो टर्की और टोफ़र्की से दूर भारतीय भोजन की सुगन्ध से ही संतुष्ट हैं।

लेकिन आज की पोस्ट का केन्द्रबिन्दु टर्की या टोफ़र्की नहीं है। आज की यह आभार पोस्ट पिट्सबर्ग निवासी 72 वर्षीय श्री महेन्द्र पटेल के सम्मान में लिखी गयी है जिन्होंने स्थानीय भोजन-भंडार (Pittsburgh food bank) को दस हज़ार डॉलर का अनुदान दिया है। लगभग पाँच वर्ष पहले अपनी पत्नी नीला के कैंसर ग्रस्त होने का समाचार मिलने पर महेन्द्र जी ने प्रभु से उनके ठीक होने की मन्नत मांगी थी। अब पत्नी के स्वस्थ होने पर आभारदिवस पर उन्होंने पिट्सबर्ग के भोजन-भंडार को एक चेक लिखकर प्रभु के प्रति अपना आभार व्यक्त किया है।

आज के कठिन समय में जब बेरोज़गारों की संख्या बढ रही है और मध्यवर्गीय लोग भी भोजन-भंडारों में दिख रहे हैं, मैंने 10,000 डॉलर (फ़ुडबैंक को) देने का निश्चय किया। ~ श्री महेन्द्र पटेल
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* Gift of thanks to food bank - स्थानीय समाचार
* काला जुमा, बेचारी टर्की
* थैंक्सगिविंग - लिया का हिन्दी जर्नल
* 24 करोड़ 80 लाख टर्कियाँ
* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* Pumpkin Pie - कद्दू की मिठाई
* Thanksgiving - a poem

Saturday, November 27, 2010

आपका आभार! काला जुमा, बेचारी टर्की - [इस्पात नगरी से - 33]

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आप लोग मेरी पोस्ट्स को ध्यान से पढते रहे हैं और अपनी विचारपूर्ण टिप्पणियों से उनका मूल्य बढाते रहे हैं इसका आभार व्यक्त करने के लिये आभार दिवस से बेहतर दिन क्या होगा।

घर के अन्दर तो ठंड का अहसास नहीं है मगर खिड़की के बाहर उड़ते बर्फ के तिनके अहसास दिला रहे हैं कि तापमान हिमांक से नीचे है। परसों आभार दिवस यानि थैंक्सगिविंग था, अमेरिका का एक बड़ा पारिवारिक मिलन का उत्सव। उसके बाद काला जुम्मा यानि ब्लैक फ़्राइडे गुज़र चुका है। बस अड्डे, हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन तो भीड़ से भरे हुए थे ही, अधिकांश राजपथ भी वर्ष का सर्वाधिक यातायात ढो रहे थे।

पहला थैक्सगिविंग सन 1621 में मनाया गया था जिसमें "इंग्लिश सैपरेटिस्ट चर्च" के यूरोपीय मूल के लोगों ने अमेरिकन मूल के 91 लोगों के साथ मिलकर भाग लिया था। थैंक्सगिविंग पर्व में आजकल का मुख्य आहार टर्की नामक विशाल पक्षी होता है परंतु किसी को भी यह निश्चित रूप से पता नहीं है कि 1621 के भोज में टर्की शामिल थी या नहीं। अक्टूबर 1777 में अमेरिका की सभी 13 कॉलोनियों ने मिलकर यह समारोह मनाया। 1789 में ज़ॉर्ज़ वाशिंगटन ने थैंक्सगिविंग को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने की घोषणा की परंतु तब इस बात का विरोध भी हुआ।

सारा जोसेफा हेल, बॉस्टन महिला पत्रिका और गोडी'ज़ लेडी'ज़ बुक के 40 वर्षीय अभियान के बाद अब्राहम लिंकन ने 1863 में आभार दिवस का आधुनिक रूप तय किया जिसमें नवम्बर के अंतिम गुरुवार को राष्ट्रीय पर्व और अवकाश माना गया। 1941 के बाद से नवम्बर मास का चौथा गुरुवार "आभार दिवस" बन गया।

दंतकथा है कि लिंकन के बेटे टैड के कहने पर टर्की को मारने के बजाय उसे राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान देकर व्हाइट हाउस में पालतू रखा गया। ज़ोर्ज़ बुश के समय से राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान की परम्परा को पुनरुज्जीवित किया गया और जीवनदान पायी यह टर्कीयाँ वर्जीनिया चिड़ियाघर और डिज़्नेलैंड में लैंड होती रही हैं। यह एक टर्की भाग्यशाली है परंतु इस साल के आभार दिवस के लिये मारी गयी साढे चार करोड टर्कियाँ इतनी भाग्यशाली नहीं थीं।

आभार दिवस के भोज के बाद लोगों को व्यायाम की आवश्यकता होती है और इसका इंतज़ाम देश के बडे चेन स्टोर करते हैं - साल की सबसे आकर्षक सेल के लिये अपने द्वार अलसुबह या अर्धरात्रि में खोलकर। इसे कहते हैं ब्लैक फ्राइडे! इन सेल आयोजनों में कभी कभी भगदड और दुर्घटनायें भी होती हैं। कुछ वर्ष पहले एक वालमार्ट कर्मी की मृत्यु भी हो गयी थी। इंटरनैट खरीदी का चलन आने के बाद से अब अगले सोमवार को साइबर मंडे सेल भी चल पडी हैं।
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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Friday, November 27, 2009

कुछ पल - टाइम मशीन में

बड़े भाई से लम्बी बातचीत करने के बाद काफी देर तक छोटे भाई से भी फ़ोन पर बात हुई। ये  दोनों भाई जम्मू में हमारे मकान मालिक के बेटे हैं। इन्टरनेट पर मेरे बचपन के बारे में एक आलेख पढ़कर बड़े भाई ने ईमेल से संपर्क किया, फ़ोन नंबर का आदान-प्रदान हुआ और आज उनतालीस साल (39) बाद हम लोग फिर से एक दूसरे से मुखातिब हुए। इत्तेफाक से इसी हफ्ते उसी शहर के एक सहपाठी से भी पैंतीस साल बाद बात हुई। उस बातचीत में थोड़ी निराशा हुई क्योंकि सहपाठी ठीक से पहचान भी नहीं सका।  लेकिन इन भाइयों की याददाश्त और उत्साह ने निराशा के उस अंश को पूरी तरह से धो डाला।

जम्मू के गरनों का स्वाद अभी भी याद है
फ़ोन रखकर हम लोग अपना सामान कार में सेट किया और निकल पड़े धन्यवाद दिवस (Thanksgiving Day) की अपनी 600 मील लम्बी यात्रा पर। पिट्सबर्ग के पहाड़ी परिदृश्य अक्सर ही जम्मू में बिताये मेरे बचपन की याद दिलाते हैं। जगमगाते जुगनुओं से लेकर हरे-भरे खड्डों तक सब कुछ वैसा ही है। आगे चल रही वैन का नंबर है JKT 3646। जम्मू में होने का अहसास और वास्तविक लगने लगता है। गति सीमा 70 मील है मगर अधिक चौकसी और भीड़ के कारण कोई भी गाड़ी 80 से ऊपर नहीं चल रही है। जहाँ तहाँ किसी न किसी वाहन को सड़क किनारे रोके हुए लाल-नीली बत्ती चमकाती पुलिस दिख रही है। वाजिब है, धन्यवाद दिवस की लम्बी छुट्टी अमेरिका का सबसे लंबा सप्ताहांत होता है। इस समय सड़क परिवहन भी अपने चरम पर होता है और दुर्घटनाएँ भी खूब होती हैं। जम्मू की यह गाडी तेज़ लेन में होकर भी सुस्त है, रास्ता नहीं दे रही है। मुझे दिल्ली के अपने बारह साल पुराने शांत मित्र फक्कड़ साहब याद आते हैं। यातायात की परवाह न करके वे अपने बजाज पर खरामा-खरामा सफ़र करते थे। मगर रहते थे हमेशा सड़क के तेज़ दायें सिरे पर। हमेशा पीछे से ठोंके जाते थे।

आधा मार्ग बीतने पर एक जगह रुककर हमने रात्रि भोजन कर लिया है। भोजन की खुमारी भी छाने लगी है। घर से निकलने में देर हो गयी थी मगर मैं अभी भी चुस्त हूँ और एक ही सिटिंग में सफ़र पूरा कर सकता हूँ। पत्नी को बैठे -बैठे बेचैनी होने लगी है सो रुकने को कहती हैं। होटल के स्वागत पर बैठी महिला दो बार अलग अलग तरह से पूछती है कि मैं डॉक्टर तो नहीं। जब उसे पक्का यकीन हो जाता है कि मैं नहीं हूँ तो झेंपती सी कहती है कि कई भारतीय लोग डॉक्टर होते हैं और अगर वह रसीद में उनके नाम से पहले यह विशेषण न लिखे तो वे खफा हो जाते हैं, बस इसलिए मुझसे पूछा। मैं कहना चाहता हूँ कि मैं अगर डॉक्टर होता तो भी ध्यान नहीं देता मगर कह नहीं पाता क्योंकि कोई कान में चीखता है, "तभी तो हो नहीं।" देखता हूँ तो पचीस साल पुराने सहकर्मी जनरंजन सरकार मुस्कराते हैं। जब भी मैं किसी परिवर्तन का ज़िक्र करता था, वे कहते थे कि यह काम नेताओं और अफसरों का है इसलिए कभी नहीं होगा। मैं कहता था कि यदि मैं नेता और अफसर होता तो ज़रूर करता। और जवाब में वे कहते थे, "इसीलिए तो तुम दोनों में से कुछ भी नहीं हो।" मेरे कुछ भी न होने की बात सही थी इसलिए उनसे कुछ कह नहीं सका हाँ एक बार इतना ज़रूर कहा कि वे अगर अपने बेटे का नाम भारत रखें तो भारत सरकार पर बेहतर नियंत्रण रख सकेंगे।

होटलकर्मी अगली सुबह के मुफ्त नाश्ते का समय बताने लगती है और मैं पच्चीस साल पुराने भारत सरकार के समय से निकलकर 2009 में आ जाता हूँ।