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Monday, May 23, 2011

तितलियाँ [इस्पात नगरी से - 40]

तकनीक भी क्या कमाल की चीज़ है। यह आधुनिक तकनीक का ही कमाल है कि आजकल लगभग हर रोज़ ही मेरी भेंट श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय से होती है। वे अपनी सुबह की सैर पर माँ गंगा के दर्शन करते हैं और लगभग उसी समय मैं अमेरिका के किसी भाग में अपनी शाम की सैर पर पैतृक सम्पत्ति में से बचे अपने एकमात्र खेत को दो भागों में बांटती अरिल नदी को मिस कर रहा होता हूँ।

जब यह बात मैंने उन्हें कही तो उन्होंने मुझे अपनी सैर के बारे में लिखने को कहा। ब्लॉगिंग के दौरान ही थोडा बहुत पढकर उन्हें जाना है। वे अनुशासित व्यक्ति दिखते हैं। नियमित रूप से प्रातः भ्रमण करने वाले। गंगा की सफाई से लेकर ज़रूरतमन्दों में कम्बल बांटने तक के बहुत से काम भी करते रहे हैं वे। ब्लॉग पोस्ट भी प्रातः निश्चित समय पर आती है। अपना हिसाब एकदम उलट है। मैंने जीवन में बहुत तरह के काम किये हैं। इतनी तरह के कि बहुत से लोग शायद विश्वास भी न करें। मगर मैं कभी भी सातत्य रख नहीं सका। कितने नगर, निवास, विषय, व्यवसाय, प्रयास, कौशल, कभी किसी चीज़ को पकड के रख नहीं सका। [या शायद मुझे इनमें कुछ भी बान्ध नहीं सका]

मुझे पता है कि मेरी सैर भी मेरे एकाध अन्य मिस-ऐडवेंचर्स की तरह कुछ दिनों तक ही नियमित रहने वाली है। सो सैर पर नियमित तो नहीं परंतु अनियमित सैरों के बीच हुई कुछ मुठभेडों की सचित्र झलकियाँ देता रहूंगा। कैमरा सदा साथ नहीं होता है इसलिये कुछ चित्र फोन से भी आते-जाते रहेंगे।

आज चित्रों के माध्यम से मुलाकात करते हैं कुछ तितलियों से। क्लिक करके सभी चित्रों को बडा किया जा सकता है।










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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]

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