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Thursday, September 4, 2008

टीस - एक कविता

(अनुराग शर्मा)

एक टीस सी
उठती है
रात भर
नींद मुझसे
आँख मिचौली करती है
मन की अंगुलियाँ
बार-बार
खत लिखती हैं
तुम्हें
दीवानी नज़रें
हर आहट पे
दौड़ती हैं
दरवाजे की तरफ़
शायद
ये तुम होगे
फिर लगता है
नहीं
तुम तो
अपनी दुनिया मे
मगन हो
अपने ही
रंग मे रंगे
अपने
सुख दुख मे खोए
अपनों से घिरे
मेरे अस्तित्व से
बेखबर
मैं समझ नहीं पाता
कि
सिर्फ मेरे नसीब में
अकेलापन
क्यों है
अकसर
एक टीस सी
उठती है।