Friday, November 16, 2012

दूर देश के काक, श्मशान और यमराज

आप सभी को यम द्वितीया (भैया दूज के पर्व) की हार्दिक शुभकामनायें!

कुछ दिन पहले गिरिजेश राव ने तेज़ी से लापता होते कौवों के बारे में पोस्ट लिखी थी। यहाँ पिट्सबर्ग में इतने कौवे हैं कि मुझे कभी यह ख्याल ही नहीं आया कि वहाँ लखनऊ में इनकी कमी महसूस की जा रही है। इसी बीच जापान जाने का मौका मिला। तोक्यो नगर में पदयात्रा पर था कि फुटपाथ के निकट ही मयूर और कौवे की मिली-जुली सी आवाज़ सुनाई दी। काँ काँ ही थी मगर इतनी तेज़ और गहरी मानो मयूर के गले से आ रही हो। शायद सामने के भवन की छत पर बैठे मित्र को पुकारा जा रहा था।

तोक्यो नगर के भारत सरीखे (परंतु अत्यधिक स्वच्छ और करीने वाले) मार्ग में भारत की ही तरह जगह जगह मन्दिर और मठियाँ दिख रही थीं। मैं उन्हें देखता चल रहा था कि एक मन्दिर में एक विकराल मूर्ति को देखकर देवता को जानने की गहरी उत्सुकता हुई। जैसे ही एक जापानी भक्त आता दिखा, मैंने पूछ लिया और उसने जापानी विनम्रता के साथ बताया, "एन्मा दाई ओ" अर्थात मृत्यु के देवता।

भैया दूज यानी यम द्वितीया के पावन पर्व के अवसर पर यमराज की याद स्वाभाविक है। आप सभी को भाई दूज की बधाई!

जापान के धरतीपकड काक

प्रकृतिप्रेमी काक

गगनचुम्बी काक

ज़ोजोजी परिसर में एक समाधि स्थल

मृतकों की शांति की प्रार्थनायें!

जापान के यमराज

एन्मा दाई ओ (यमदेव)
Saturday, November 6, 2010 अनुराग शर्मा (मूल आलेख: नवम्बर ६, २०१०)

Monday, November 12, 2012

भारतीय संस्कृति के रखवाले

दीवाली के मौके पर यहाँ पिट्सबर्ग में एक भारतीय समारोह में जाना पड़ा। मेरी आशा के विपरीत दीये और मिठाई कहीं नज़र नहीं आयी। अलबत्ता शराब व कबाब काफ़ी था। कहने को शबाब भी था मगर मेकअप के नीचे छटपटा सा रहा था।

बहुत से लोगों से मुलाक़ात हुई। नवीन जी भी उन्हीं में से थे। दारु का गिलास उठाये कुछ चलते, कुछ झूमते, कुछ उड़ते और कुछ छलकते हुए से वे मेरे साथ की सीट पर संवर गए। अब साथ बैठे हैं तो बात भी करेंगे ही। पहले औपचारिकताएँ हुईं। मौसम, खेल, व्यवसाय, परिवार से गुज़रते हुए हम बड़ी बड़ी बातों तक पहुँचे। विदेश में बसे कुछ भारतीयों के लिए बड़ी बात का मतलब है उस मातृभूमि की फ़िक्र का ज़िक्र जिसके लिए हमने कभी अपनी जिंदगी से न एक पल दिया और न एक धेला ही।

वे पूछने लगे कि अगर मैं इसी शहर में रहता हूँ तो फ़िर कभी उन्हें मन्दिर में क्यों नहीं दिखता। मैंने अंदाज़ लगाकर बताया कि शायद हमारे मन्दिर जाने के दिन और समय अलग अलग रहे हों। वैसे भी भक्ति और पूजा मेरे लिए एक व्यक्तिगत विषय है और मेरी मन्दिर यात्रायें नियमित भी नहीं हैं। मेरी बात उनको अच्छी नहीं लगी।

"तो अपने बच्चों को हिन्दी नहीं सिखायेंगे क्या?" झूमते हुए उन्होंने अपना गिलास मुझपर लगभग उड़ेल ही दिया।

"मेरे बच्चे हिन्दी, ही नहीं बल्कि और भी भारतीय भाषायें अच्छी तरह जानते हैं। वे तो हिन्दी सिखा भी सकते है" मैंने खुश होकर उन्हें बताया।

"सवाल केवल भाषा का नहीं है।" उन्होंने मेरी मूर्खता पर हँसते हुए कहा, "अमेरिका में भारतीय संस्कृति को भी तो ज़िंदा रखना है ..."

अपने इस कथन को वे शायद ही सुन पाए होंगे क्योंकि इसे पूरा करने से पहले ही वे टुन्न हो गए। वे सोफा पर और भरा हुआ गिलास कालीन पर लोटने लगा। मैं समझ गया कि अमेरिका में उनकी भारतीय संस्कृति को कोई ख़तरा नहीं है।

आप सभी को, मित्रों और परिजनों के साथ दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं! 
पिट्सबर्ग का एक दृश्य

 [मूल आलेख: अनुराग शर्मा; शनिवार २१ जून २००८]

Saturday, November 3, 2012

तूफ़ान, बर्फ और उत्सव - इस्पात नगरी से [61]

भारतीय पर्व पितृपक्ष की याद दिलाने वाला हैलोवीन पर्व गुज़ारे हुए कुछ समय हुआ लेकिन हाल में आये भयंकर तूफ़ान सैंडी के कारण अधिकाँश बस्तियों ने उत्सव का दिन टाल दिया था। हमारे यहाँ यह उत्सव आज मनाया गया। खूबसूरत परिधानों में सजे नन्हे-नन्हे बच्चे घर घर जाकर "ट्रिक और ट्रीट" कहते हुए कैंडी मांग रहे थे। विभिन्न स्कूलों व कार्यालयों में यह उत्सव कल या परसों बनाया गया था जब सभी बड़े और बच्चे तरह तरह के भेस बनाए हुए टॉफियों के लेनदेन में व्यस्त थे। आसपास से कुछ चित्रों के साथ आपको हैलोवीन की शुभकामनाएं!



 सैंडी तूफ़ान ने अमेरिका के न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी समेत कुछ क्षेत्रों में काफ़ी तबाही मचाई और अमेरिका के सबसे बड़े नगर का कामकाज बिलकुल रोक दिया। इसका असर हमारे यहाँ भी हुआ। हफ्ते भर चलने वाली बरसात के साथ-साथ आसपास के कुछ क्षेत्रों में समयपूर्व हिमपात देखने को मिला। आपके लिए एक हिमाद्री क्लिप एक नज़दीकी राजमार्ग से:

सम्बंधित कड़ियाँ
* हैलोवीन - प्रेतों की रात्रि [२०११]
* प्रेतों का उत्सव [२००९]
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला

[वीडियो व चित्र अनुराग शर्मा द्वारा]